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Friday 5 April 2013

होली है

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होली में भंग की गोली चखो, औ रंग की भर - भर दे पिचकारी.
मत मान बुरा - मत सोच ज़रा, खुश कौन हुआ कौन देवे है गारी.
बुढा - जवान में भेद दिखे नहीं , फाग के रंग में सब रंग जावे.
मुँह में दाँत - न पेट में आँत, पर फाग के राग में सब रम जावे.
ढोल - मजीरा के ताल पे थिरके, अस्सी बरीस के दे - दे के तारी.
होली में भंग की गोली चखो, औ रंग की भर - भर दे पिचकारी.
नारि नवेली से जाकर पूछो, का होव...त फगुनी अंगड़ाई.
होली के रंग में भंग पड़े, जब संग नहीं साजन हरजाई.
पुआ भी रोटी सरीखा लगे, और होली की गीत लगे जस गारी.
होली में भंग की गोली चखो, औ रंग की भर - भर दे पिचकारी.
. .... सतीश मापतपुरी
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जय - जय बिहार की भूमि, तुम्हें शत नमन हमारा

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(22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है . इस अवसर पर अनेक कार्यक्रम का आयोजन 22 से 24 मार्च को आयोजित किया जां रहा है . बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाये )

बिहार

जय - जय बिहार की भूमि, तुम्हें शत नमन हमारा.
तेरी महिमा अतुलनीय , यश तेरा निर्मल - न्यारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
फली - फुली सभ्यता - मानवता , तेरी ही गोदी में.
बिखरी है चहुँओर सम्पदा , इस पावन माटी में.
जली यहीं से ज्योति ज्ञान की, चमका विश्व ये सारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
राजनीति या धर्मनीति हो, शास्त्रनीति या शस्त्रनीति हो.
उद्गम - स्थल यहीं है सबका, रीति - रिवाज़ या संस्कृति हो.
ज्ञान - विज्ञान , साहित्य - कला की, यहीं से फूटी धारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
महावीर और गुरु गोविन्द की, जन्मभूमि यह धरती.
गौतम - गांधी - बाल्मीकि की, कर्मभूमि यह धरती.
गणतंत्र को सबसे पहले, इस धरती ने उतारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
------ सतीश मापतपुरी
---- जय बिहार - जय भारत ------
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जीवन और मौसम

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जीवन और मौसम
मन रे ........ काहें को नीर बहाये.
जीवन मौसम की भांति है, रुत आये - रुत जाये.
शिशिर - बसंत में मस्त पवन बह, अंग -अंग सहलाये.
होली - चईत का धुन हर मन में, मिलन की लगन जगाये.
मौसम की यौवन अनुभूति, नस - नस आग लगाये.
बिरहिन की आँखों - आँखों में, ही रजनी कट जाये.
शीत ऋतु गयी - आई गर्मी, कोमल तन झुलसाये.
जीवन मौसम की भांति है, रुत आये - रुत जाये.
मन रे ........ काहें को नीर बहाये.
जेठ का तेवर देख के डर से, सब घर में छिप जाये.
दिन - दुपहरिये ही गोरी को, पिय का संग मिल जाये.
गरमी का भी अपना सुख है, सजनी बेन डोलाये.
खेत - बधार से मिल गई छुट्टी , सब मिल मोद मनाये.
पड़त फुहार खिलत मन - बगिया, वर्षा ऋतु जब आये.
जीवन मौसम की भांति है, रुत आये - रुत जाये.
मन रे ........ काहें को नीर बहाये.
चढ़त अषाढ़ भरे नदी - नाले, खेतों में हरियाली.
सावन में गोरी की हथेली, में मेहंदी की लाली.
आसिन - कार्तिक में खेतों में, झूमे धान की बाली.
अगहन अपने साथ ले आती, घर - घर में खुशहाली.
पौष की धौंस से सहमी गोरी, पिय को सनेस पठाये.
जीवन मौसम की भांति है, रुत आये - रुत जाये.
मन रे ........ काहें को नीर बहाये.
---- सतीश मापतपुरी
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